सिरोही : भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम के पराक्रम के बारे में तो हम सभी जानते हैं. देश में भगवान परशुराम के कई मंदिर है, लेकिन आज हम आपको भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि के आश्रम के बारे में बताने जा रहे हैं. सिरोही जिले के पिंडवाड़ा तहसील में वासा गांव से करीब 1.5 किलोमीटर दूर पहाडियों के बीच बने इस प्राचीन स्थान पर वर्तमान में शिव मंदिर है.

ऋषि जमदग्नि के नाम पर ही यहां बने शिव मंदिर का नाम जाबेश्वर महादेव पड़ा. मंदिर के चारों तरफ पहाडियां और हरियाली नजर आती है. पास में एक तालाब में काफी संख्या में कमल के फूल खिलते हैं. वहीं मंदिर के आगे मंदाकिनी कुंड में बने गोमुख से गर्म पानी आता है. जो भक्तों में चर्चा का विषय बना हुआ है. ये पानी बिना किसी मोटर के प्राकृतिक रूप से बह रहा है.

मंदिर में जमदग्नि ऋषि की प्रतिमा के साथ ही भगवान शिव विराजमान है. यहां भगवान परशुराम का मंदिर भी है. मंदिर के मध्य भाग में बने जलकुंड में भगवान शिव की योग मुद्रा में मूर्ति विराजमान हैं. मंदिर परिसर में धर्मशाला, भोजनशाला और गौशाला भी बनी हुई है. गौशाला में काफी संख्या में गायों की देखभाल होती है.


भगवान परशुराम ने सहस्त्रबाहु अर्जुन से युद्ध कर छुड़वाई थी गायें
सेवानिवृत प्रधानाचार्य और भक्त राजेश दवे ने मंदिर को लेकर मान्यताओं के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि मान्यताओं के अनुसार जाबेश्वर महादेव मंदिर में कई हजारों वर्ष पहले भ्रगु ऋषि के वंशज परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि का आश्रम हुआ करता था. आसपास घना जंगल था. एक बार प्रतापी राजा सहस्त्रबाहु अर्जुन अपनी सेना के साथ यहां आए थे. घने जंगल में भी यहां गौशाला में गायों के दूध और अन्य पेड़-पौधों से पूरी सेना को भोजन करवाया गया.
ये देखकर सहस्त्रबाहु अर्जुन को आश्चर्य हुआ कि इतने घने जंगल में कम सुविधाओं के बीच पूरी सेना को भोजन कैसे करवाया गया. इसका पता किया गया तो यहां कामधेनु नंदिनी गाय के होने का पता लगा. सहस्त्रबाहु अर्जुन के मन में लालच आया और ऋषि से गायें मांगी, तो ऋषि ने मना कर दिया तो वे बलपूर्वक गायों को अपनी सेना के साथ ले जाने लगे. इस बात का पता लगने पर परशुराम ने सेना के साथ आश्रम से कुछ दूर पहुंचने पर सहस्त्रबाहु और उसकी सेना के साथ युद्ध किया और गायों को छुड़वाकर वापस आश्रम में लाया.

कई समाजों के कुलदेवता और मन्नत करने आते हैं भक्त
मंदिर को लेकर क्षेत्र में काफी मान्यता है. जाबेश्वर महादेव कई समाजों के कुलदेवता मानें जानें से यहां काफी भक्त मन्नत, मुंडन, धोक देने समेत अन्य रस्मों के लिए आते हैं. मंदिर और आसपास के विकास में केतन ओझा के प्रयासों ने अहम भूमिका निभाई है.