बुराड़ी अथॉरिटी में ऑटो परमिट अवैध तरीके से किसी और के नाम ट्रांसफर कराने के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने इस मामले की शुरुआत में जिन 70 केसों की जांच की है उनमें 30 मृत ऑटो चालकों को जिंदा करने की बात सामने आई है। एसीबी ने शुरुआती में जांच के लिए सिर्फ 200 फाइलें ली हैं। वर्ष 2021 में 5500 ऑटो के परमिट ट्रांसफर किए गए थे। इसके अलावा एसीबी ने आरोपी अथॉरिटी इंस्पेक्टर को करोड़ों की रिश्वत देने वाले दलाल जसप्रीत सिंह कठूरिया उर्फ रिसू को गिरफ्तार किया है। जांच में यह बात सामने आई है कि दलाल रिसू ही मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर सुरेश कुमार (59) को ऑटो परमिट अवैध तरीके से ट्रांसफर करने के लिए सीधी रिश्वत देता था। वह इंस्पेक्टर सुरेश कुमार को एक ऑटो परमिट के 25 से 28 हजार रुपये देता था। ये साफ हो गया है कि 30 ऑटो परमिट अवैध रूप से ट्रांसफर कराने के लिए दलाल ने 90 लाख से ज्यादा रुपये इंस्पेक्टर को दिए थे। ये तो शुरुआती 30 केसों की बात है। जांच पूरी होने पर रिश्वत की कुल रकम का पता लगेगा। एसीबी प्रमुख मधुर वर्मा ने बताया कि एसीबी ऑटो परमिट ट्रांसफर की जांच कर रही है। एसीबी ने दलाल जसप्रीत सिंह को गिरफ्तार किया है। इस मामले में अब कुल 15 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। जल्द ही पूरे रैकेट का पर्दाफाश किया जाएगा। 

हाईकोर्ट के आदेश पर जांच कर रही भ्रष्टाचार निरोधक शाखा

ऑटो के परमिट में हेराफेरी के मामले सामने आने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद एसीबी ने मामला दर्जकर अतिरिक्त पुलिस आयुक्त श्वेता सिंह चौहान, एसीपी जरनैल सिंह व इंस्पेक्टर लक्ष्मी की टीम ने जांच शुरू की थी। जांच में एसीपी जरनैल सिंह को पता लगा कि बुराड़ी अथॉरिटी में ऑटो परमिट अवैध रूप से बड़े पैमाने पर किए जा रहे हैं। ये बड़ा रैकेट है। एसीबी ने इस रैकेट का पर्दाफाश कर अथॉरिटी के एक वाहन इंस्पेक्टर सुरेश कुमार,10 हाई प्रोफाइल ऑटो फाइनेंसर्स और डीलर्स तथा 3 दलालों समेत कुल 14 आरोपियों को गिरफ्तार था। एसीपी जनरैल सिंह व इंस्पेक्टर लक्ष्मी की टीम ने इसके बाद अब दलाल जसप्रीत सिंह कठूरिया को गिरफ्तार किया है। उसे रविवार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

ऑटो मालिक के फर्जी हस्ताक्षर करता था दलाल

एसीबी अधिकारियों के अनुसार दलाल जसप्रीत ने खुलासा किया है कि वह ऑटो परमिट ट्रांसफर के लिए सेल लेटर पर ऑटो मालिक के खुद ही फर्जी हस्ताक्षर करता था। एसीबी शुरूआत में जिन 70 केसों की जांच कर रही है उनमें से 30 पता लगा कि ऑटो मालिक व परमिट धारक की पहले ही मौत हो चुकी है। इन लोगों ने ऑटो चालक को जिंदा बताकर उसके परमिट ट्रांसफर सेल लैटर पर फर्जी हस्ताक्षर परमिट किसी के नाम ट्रांसफर करा लिया। मृत चालक के परिजनों को इसकी भनक नहीं लगती थी। 

रामआसरे के केस से मामला खुला

एसीबी अधिकारियों ने बताया कि जांच में ये बात भी सामने आई है कि मालिक की मौत होने के बावजूद ऑटो व परमिट के ट्रांसफर के काफी केस आ रहे थे। इसकी अथॉरिटी में शिकायत दी गई थी। मगर कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। बताया जा रहा है एक बाजार विभाग स्तर पर विजिलेंस जांच में भी हुई थी। जांच के बाद कहा गया कि मालिक जिंदा थे। इसके बाद कुछ लोगों ने हाईकोर्ट में याचिका लगाई। बिहार निवासी ऑटो चालक रामआसरे के ऑटो का नंबर हाईकोर्ट में दिया गया। हाईकोर्ट ने इस मामले में एसीबी को जांच के आदेश दिए। 

एक ही शिकायत के दो पहलू

ऑटो परमिट के अवैध रूप से ट्रांसफर की शिकायत सबसे पहले वर्ष 2021 में ही दिल्ली सरकार की ट्रांसपोर्ट विभाग की विजिलेंस को जांच के लिए दी गई थी। जांच के बाद विजिलेंस ने कहा था कि सब ठीक है। किसी भी ऑटो का परमिट अवैध रूप से ट्रांसफर नहीं हुआ। इसकी शिकायत को हाईकोर्ट के आदेश के बाद एसीबी को दी गई। इसकी शिकायत पर एसीबी ने मामला दर्ज किया और अब तक 15 लोगों को गिरफ्तार इस बड़े रैकेट का खुलासा कर चुकी है।

ऑटो परमिट को ट्रांसफर करने का खेल ऐसे चलता था

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत एक लाख ऑटो के परमिट ही रजिस्टर्ड हैं। आदेशों के तहत कोई नया ऑटो का परमिट रजिस्टर्ड नहीं होता। ऐसे में अथॉरिटी अधिकारी, फाइनेंस, डीलर व दलाल मिलकर पुराने ऑटो के परमिट को अवैध तरीके से हासिल करते हैं। इनको पता लग जाता है कि चालक की कई वर्ष पहले मृत्यु हो चुकी है। ये एप्लीकेशन व सेल लैटर ऑटो परमिट मालिक के फर्जी हस्ताक्षर कर परमिट को किसी और के नाम ट्रांसफर करवा देते थे। परिजनों को गुमराह कर परमिट ले लेते हैं। ये चालक व परिजनों को 10 से 15 हजार दे देते हैं और उन्हें गुमराह कर परमिट समेत ऑटो खरीद लेते हैं। जिसे ये परमिट बेचते थे उससे 10 से 15 लाख लेते थे। किराए पर ऑटो देने वाले ऑटो मालिकों को गुमराह कर उनसे परमिट हासिल कर लेते थे। पुराने व खत्म हो चुके परमिट भी अथॉरिटी से निकाल लेते थे। परमिट ट्रांसफर करवा कर नया ऑटो खरीद लेते थे। इसके बाद डीलर व फाइनेंसर का खेल शुरू हो जाता था।